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शिक्षा: प्रगति का मुख्य कारण

बेहतर शिक्षा सभी के लिए जीवन में आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत आवश्यक है। यह हममें आत्मविश्वास विकसित करने के साथ ही हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी सहायता करती है।हम सभी अपने बच्चों को सफलता की ओर जाते हुए देखना चाहते हैं, जो केवल अच्छी और उचित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।शिक्षा सभी के लिए बहुत आवश्यक है। पढ़ा-लिखा व्यक्ति जीवन में काफी-कुछ कर सकता है जो कि एक धनवान परन्तु अनपढ़ व्यक्ति नहीं कर सकता। इसीलिए कहा भी जाता है ज्ञान सबसे बड़ा धन है। एक ऐसा व्यक्ति जो पढ़ा-लिखा नहीं है परन्तु उसके पास धन बहुत है वह उस धन का दुरुपयोग कर सकता है लेकिन एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति कम धन होते हुए भी अपनी बुद्धि से धन का सदुपयोग कर के लाभ पा सकता है। शिक्षा से व्यक्ति को जीवन सही प्रकार से जीने का तरीका आता है। दूसरी ओर सब कुछ होते हुए भी एक अनपढ़ व्यक्ति जीवन में भटक जाता है।

आज के समाज में शिक्षा का महत्व काफी बढ़ चुका है। शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है। शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि एक व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके। शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक बहुत ही आवश्यक साधन है। हम अपने जीवन में शिक्षा के इस साधन का उपयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है, यहीं कारण है कि हमें शिक्षा हमारे जीवन में इतना महत्व रखती है। शिक्षा लेने के तरीके एवं उसे उपयोग करने के तरीके भी बहुत हैं। लेकिन हमें ऐसी शिक्षा प्रदान एवं प्राप्त करनी चाहिये जिससे व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके एवं उसके विकास के लिए कार्य कर सके। शिक्षा मात्र डिग्री प्राप्त कर नौकरी पाने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिये बल्कि यह इस प्रकार से दी जानी चाहिये जिससे व्यक्ति के अन्दर आत्म विश्वास जागृत हो और वह मात्र धन कमाने तक ही सीमित न रहे।

शिक्षा का अर्थ मात्र पढ़ना-लिखना जानना ही नहीं है। शिक्षा का अर्थ है सही-गलत में समझ विकसित कर निर्णय लेने की क्षमता। यदि इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त न की जाये तो यह निरर्थक रुपयों एवं समय की बर्बादी है। यदि शिक्षा सही प्रकार से प्राप्त की जाये तो यह अमूल्य धरोहर है। यह ऐसा धन है जिसे चोर भी नहीं चुरा सकता बल्कि यह बांटने पर बढ़ता है। व्यक्ति शिक्षा से धन प्राप्त कर सकता है पर धन से शिक्षा नहीं। उसके लिए व्यक्ति के अन्दर शिक्षा प्राप्त करने की जिज्ञासा होनी चाहिये। क्योंकि कई ऐसे संस्थान हैं जो गरीब परन्तु शिक्षा के लिए जिज्ञासु बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं।

व्यक्ति जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक जीवन में हर पग-पग पर कुछ न कुछ सीखता रहता है। प्राचीन समय में बच्चे गुरुकुल में रह कर शिक्षा अर्जित करते थे। बच्चे गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ अपने गुरुजनों की सेवा तथा अन्य कई काम भी करते थे जिससे उन्हें जीवन के अन्य पक्षों का भी ज्ञान होता था, जिसे हम आजकल व्यावहारिक शिक्षा के नाम से जानते हैं।आजकल उस प्रकार के गुरुकुल तो नहीं हैं परन्तु कई सरकारी एवं गैर-सरकारी शिक्षण संस्थायें शिक्षा प्रदान करने का कार्य कर रही हैं। जहाँ बच्चों को कई विषयों की शिक्षा दी जाती है।शिक्षित व्यक्ति के अन्दर ही अच्छे एवं नये विचार जन्म लेते हैं तथा कुविचारों का अंत होता है। यदि व्यक्ति जीवन में उन्नति चाहता है तो उसे शिक्षा की सीढ़ी चढ़ना बहुत आवश्यक है। क्योंकि शिक्षा ही व्यक्ति का सही मार्ग प्रषस्त करती है। शिक्षित व्यक्ति को सभी लोग सम्मान की दॄष्टि से देखते हैं। शिक्षित व्यक्ति के आचार एवं विचार में शिक्षा की झलक दिखती है। शिक्षित व्यक्ति समाज को भी परोक्ष एवं प्रत्यक्ष से शिक्षित करने का कार्य करता है। शिक्षा के अभाव में हम दूसरे का तो क्या अपना भी भला नहीं कर सकते।

शिक्षा साध्य नही है वरन किसी लक्ष्य को पाने का साधन है. हम बच्चो को शिक्षा देने के लिए शिक्षा नही देते है. हमारा प्रयोजन होता है उन्हें जीवन के लिए योग्य और सक्षम बनाना।
जैसे ही हम इस सत्य को अच्छी तरह ग्रहण कर लेगे, वैसे ही यह बात हमारे समझ में आ जाएगी कि महत्वपूर्ण यह है कि हम ऐसी शिक्षा पद्दति को चुने, जो बच्चो को वास्तव में जिन्दगी जीने के लिए तैयार करे।
यह काफी नही है, कि उसी पद्दति को चुन ले, जो हमे सबसे पहले प्राप्त हो. या अपनी पुरानी पद्दति को ही, बिना यह जांचे हुए कि वह सचमुच उपयुक्त है या नही, आगे चलाते चले।

सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात विद्या अथवा शिक्षा वही है जो हमे मुक्ति दिलाती है।
यह मुक्ति अन्धकार से, अज्ञान से तथा अकर्मण्यता से है।बालक जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त कुछ न कुछ सीखता रहता है किन्तु औपचारिक शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य उसके सामने स्पष्ट होने जरुरी है। आज हमारी शिक्षा निति केवल जीवन निर्वाह की शिक्षा व्यवस्था ही दे रही है। जबकि होना यह चाहिए कि शिक्षा जीवन निर्वाह की अपेक्षा जीवन निर्माण का उद्देश्य पूरा करे।
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की मेरुदंड कही जा सकती है जो संस्कारवान, स्वस्थ, श्रमनिष्ट, संस्कृतंनिष्ट, साहसी एवं कुशल नागरिकों का निर्माण कर सके, इसलिए शिक्षा एक तरफ व्यक्ति निर्माण का कार्य करती है तो दूसरी ओर राष्ट्र निर्माण का भी अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करती है. यदि किसी राष्ट्र का समुचित विकास तथा उसके नागरिकों का सही व्यक्तित्व का निर्माण करना है तो उसकी शिक्षा के उद्देश्य का होना आवश्यक है।शिक्षा वस्तुतः कोई पाठ्यक्रम या डिग्री प्राप्त करना भर नही है. बल्कि जीवन में चलने वाली सतत प्रक्रिया है. जो कुछ न कुछ सिखाती रहती है।
शिक्षा से ही व्यक्ति और राष्ट्र के चरित्र का निर्माण होता है।यदि किसी देश की शिक्षा व्यवस्था उद्देश्यपूर्ण और अच्छी होगी तो उसके नागरिको का चरित्र भी अच्छा होगा।

निष्कर्ष:

शिक्षा में ही इतनी शक्ति होती है कि वह अंधकार को प्रकाश में, रंक को राजा में,निर्धन को धनवान में बदल सकती है।शिक्षा का मूल उद्देश्य निर्माण है,पूरे समाज का निर्माण।केवल शिक्षा ही समाज के सारे कुरीतियों को मिटा सकती है।ज्ञान का दीप जला सकती है।शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को उच्च स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है और समाज में लोगों के बीच सभी भेदभावों को हटाने में मदद करती है। यह हमारी अच्छा अध्ययन कर्ता बनने में मदद करती है और जीवन के हर पहलू को समझने के लिए सूझ-बूझ को विकसित करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में भी हमारी सहायता करता है।
वास्तव में शिक्षा से ही पूरे सृष्टि है, और शिक्षा ही अच्छाई का निर्माण और बुराई का विनाश करती है।

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